रविवार, जुलाई 15, 2012

संसार भी एक ग्रेविटी है.........




















बहुत-से व्यक्ति थे जो पहले सिद्धान्तवाद की राह पर चले और भटक
 कर कहाँ से कहाँ पहुँचें? भस्मासुर का पुराना नाम बताऊँ आपको! 
मारीचि का पुराना नाम बताऊँ आपको। ये सभी योग्य तपस्वी थे। 
पहले जब उन्होंने उपासना-साधना शुरू की थी, तब अपने घर से तप 
करने के लिए हिमालय पर गए थे। तप और पूजा-उपासना के साथ-साथ
 में कड़े नियम और व्रतों का पालन किया था। तब वे बहुत मेधावी थे, 
लेकिन समय और परिस्थितियों के भटकाव में वे कहीं के मारे कहीं चले गए। भस्मासुर का क्या हो गया? जिसको प्रलोभन सताते हैं वे भटक जाते हैं और कहीं के मारे कहीं चले जाते हैं।
साधु-बाबाजी जिस दिन घर से निकलते हैं, उस दिन यह श्रद्धा लेकर निकलते हैं,कि हमको संत बनना है, महात्मा बनना है, ऋषि बनना है, तपस्वी बनना है।लेकिन थोड़े दिनों बाद वह जो उमंग होती है, वह ढीली पड़ जाती है और ढीली पड़ने के बाद में संसार के प्रलोभन उनको खींचते हैं। किसी की बहिन-बेटी की ओर देखते हैं, किसी से पैसा लेते हैं। किसी को चेला-चेली बनाते हैं। किसी की हजामत बनाते हैं। फिर जाने क्या से क्या हो जाता है? पतन का मार्ग यहीं से आरम्भ होता है। गे्रविटी-गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की हर चीज को ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।संसार भी एक ग्रेविटी है। आप लोगों से सबसे मेरा यह कहना है,कि आप गै्रविटी से खिंचना मत। रोज सबेरे उठकर भगवान के नाम के साथ में यह विचार किया कीजिए कि हमने किन सिद्धान्तों के लिए समर्पण किया था?
 और पहला कदम जब उठाया था तो किन सिद्धान्तों के आधार पर उठाया था? उन सिद्धान्तों को रोज याद कर लिया कीजिए। रोज याद किया कीजिए कि हमारी उस श्रद्धा में और उस निष्ठा में, उस संकल्प और उस त्यागवृत्ति में कहीं फर्क तो नहीं आ गया। संसार में हमको खींच तो नहीं लिया। कहीं हम कमीने लोगों की नकल तो नहीं करने लगे। आप यह मत करना। अब एक और नई बात शुरू करते हैं।



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