अनेक बार ऐसा देखा गया है कि सच्चे हृदय से भगवान् की प्रार्थना करने से, अपना इच्छित मनोरथ पूरा कर देने की प्रभु से याचना करने से, वह कार्य पूरा हो जाता है। इस प्रार्थना से सिद्धि मिलने का एक आध्यात्मिक रहस्य है- वह यह है कि प्रार्थना करने वाले को यह विश्वास रहता है कि (१) परमात्मा ऐसा शक्तिशाली है कि वह चाहे तो आसानी से मेरी इच्छा को पूरा कर सकता है। (२)परमात्मा दयालु है। उसके स्वभाव को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि मेरे कार्य को पूरा कर देगा। (३) मेरी माँग उचित, आवश्यक और न्याय संगत है, इसलिए परमात्मा की कृपा मुझे प्राप्त होगी। (४) अपने अन्त:करण का श्रेष्ठतम भाग श्रद्धा, विश्वास परमात्मा पर आरोपण करते हुए सच्चे हृदय से प्रार्थना कर रहा हूँ। इसलिए मेरी पुकार सुनी जायेगी। इन चारों तथ्यों के मिलने से याचक की आकांक्षा प्रबल हो उठती है और उसके पूरे होने का बहुत हद तक उसे विश्वास हो जाता है। आशा की किरणों का प्रकाश उसके अन्त:करण में बढ़ जाता है। ऐसे मानसिक स्थिति का होना सफलता की एक पूर्व भूमिका है। तरीका चाहे कोई भी हो, पर मनुष्य यदि अपनी मानसिक स्थिति ऐसी बना ले कि मेरा मनोरथ सफल होने की पूरी आशा, पूरी संभावना है। तो अधिकांश में उनके मनोरथ पूरे हो जाते हैं; क्योंकि आशा और सम्भावनामयी मनोदशा के कारण शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ असाधारण रूप से जाग उठती हैं और उत्तमोत्तम उपाय सूझ पड़ते हैं। मार्ग निकलते हैं, एवं सहयोग प्राप्त होते हैं, जिनके कारण सफलता का मार्ग बहुत आसान हो जाता है और प्राय: वह प्राप्त भी हो जाती है।
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मंगलवार, दिसंबर 20, 2011
प्रार्थना से सिद्धि..............
अनेक बार ऐसा देखा गया है कि सच्चे हृदय से भगवान् की प्रार्थना करने से, अपना इच्छित मनोरथ पूरा कर देने की प्रभु से याचना करने से, वह कार्य पूरा हो जाता है। इस प्रार्थना से सिद्धि मिलने का एक आध्यात्मिक रहस्य है- वह यह है कि प्रार्थना करने वाले को यह विश्वास रहता है कि (१) परमात्मा ऐसा शक्तिशाली है कि वह चाहे तो आसानी से मेरी इच्छा को पूरा कर सकता है। (२)परमात्मा दयालु है। उसके स्वभाव को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि मेरे कार्य को पूरा कर देगा। (३) मेरी माँग उचित, आवश्यक और न्याय संगत है, इसलिए परमात्मा की कृपा मुझे प्राप्त होगी। (४) अपने अन्त:करण का श्रेष्ठतम भाग श्रद्धा, विश्वास परमात्मा पर आरोपण करते हुए सच्चे हृदय से प्रार्थना कर रहा हूँ। इसलिए मेरी पुकार सुनी जायेगी। इन चारों तथ्यों के मिलने से याचक की आकांक्षा प्रबल हो उठती है और उसके पूरे होने का बहुत हद तक उसे विश्वास हो जाता है। आशा की किरणों का प्रकाश उसके अन्त:करण में बढ़ जाता है। ऐसे मानसिक स्थिति का होना सफलता की एक पूर्व भूमिका है। तरीका चाहे कोई भी हो, पर मनुष्य यदि अपनी मानसिक स्थिति ऐसी बना ले कि मेरा मनोरथ सफल होने की पूरी आशा, पूरी संभावना है। तो अधिकांश में उनके मनोरथ पूरे हो जाते हैं; क्योंकि आशा और सम्भावनामयी मनोदशा के कारण शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ असाधारण रूप से जाग उठती हैं और उत्तमोत्तम उपाय सूझ पड़ते हैं। मार्ग निकलते हैं, एवं सहयोग प्राप्त होते हैं, जिनके कारण सफलता का मार्ग बहुत आसान हो जाता है और प्राय: वह प्राप्त भी हो जाती है।
सोमवार, दिसंबर 19, 2011
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो..............
तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।
मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
शनिवार, दिसंबर 17, 2011
आज तो निश्चित अडिग संकल्प ले लो............
करो ऐसा कि लोग तुम्हे पागल समझे.... और जब उसका परिणाम सामने आये तो तुम लोगो को पागल समझो..................
जब जीत निश्चित हो तो हर कोई लड़ सकता हैं............... मुझे तो कोई ऐसा व्यक्ति दिखाओ जो हार निश्चित होने पर भी लड़ने का साहस रखता हो....
जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती हैं................. औरो के कंधो पर सिर्फ जनाजे उठा करते हैं:- भगत सिंह
गुरुवार, दिसंबर 15, 2011
स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कहा करते थे..............
!!
स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कहा करते थे - दो प्रकार की मक्खियाँ होती है !
एक तो शहद की मक्खियाँ, जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं खाती और दूसरी
साधारण मक्खियाँ , जो शहद पर भी जा बैठती हैं और यदि सड़ता हुवा घाव
दिखलाई पड़े तो तुरंत शहद को छोड़कर उस पर भी जा बैठती हैं ! इसी प्रकार इस
संसार में दो तरह के स्वभाव के लोग होते हैं एक जो ईश्वर में अनुराग रखते
है, वे ईश्वर की चर्चा के सिवाय कोई दूसरी बात करते ही नहीं और दूसरे जो
संसार मे आसक्त जीव हैं, वे ईश्वर की बात सुनते-सुनते यदि किसी स्थान पर
विषय की बातें होती हों तो तुरन्त भगवान की चर्चा छोड़कर उसी में संलग्न हो
जाते है ! पतन एक सहज गति क्रम है, उठना पराक्रम है ! अचेतन की पाशविक
प्रवृत्तियां बार-बार मनुष्य को घसीट कर विषयी बनने की ओर प्रवृत्त करती
हैं ! यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इन पर किस प्रकार अंकुश लगा पाता है व
प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग कर पाता है !!
बुधवार, दिसंबर 14, 2011
इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति.............
" इस्लाम जगत में कुर्बानी के विरोध में क्रान्ति" ( वर्ष १९९७ संस्करण )" वर्तमान में इस्लाम जगत के जाने माने लेखक, वरिष्ठ पत्रकार पाकिस्तानी-निवासी श्री मसूद अहमद ने अपने लेख में लिखा है कि ईद पर होने वाली लाखों पशुओं की कुर्बानी जिससे पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, रोकी जाए; यहाँ तक कि वहाँ के मजहबों मंत्री मौलाना अब्दुल सत्तार ने जनता से अपील करते हुए कहा है कि हज़रत मोहम्मद के दो सम्मान योग्य सहकारियों हज़रत अबुकर और हज़रत उम्र ने अपने तमाम जीवन में ईद के दिन एक भी पशु कुर्बान नहीं किया .... हज़रत मोहम्मद के एक और महत्वपूर्ण सहयोगी हज़रत अबू मसअद अंसारी बहुत बड़े व्यापारी थे. हजारों भेड़ों के मालिक थे, परन्तु उन्होंने कभी किसी जानवर को कुर्बान नहीं किया. हज़रत उमर ने अह करते हुए एक भी पशु की कुर्बानी नहीं दी. मराकों में इस्लामी-प्रणाली लागू है; वहाँ के शासक को अमीरुल मोमनीन कहा जाता है. जिन्होंने बारह वर्ष पूर्व ईद के अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हर वर्ष तीस लाख पशुओं को कुर्बान किया जाता है, जिनकी कीमत २० करोड़ डालर है. इस प्रथा को रोक दिया जाए. वहाँ के उलमा ने शासक का साथ दिया और कुर्बानी रोक दी गयी. वैसे कुरान में भी साफ़ लिखा है कि अल्लाह खून और गोश्त पसंद नहीं करता, उस तक तो सिर्फ भावना ही पहुँचती है." - प.पू. देवी माँ (श्रीमती कुसुम अस्थाना)
शनिवार, दिसंबर 10, 2011
बुधवार, दिसंबर 07, 2011
सम्पत्ति ही नहीं सदबुद्धि भी............
सुख-सुविधा की साधन-सामग्री बढ़ाकर संसार में सुख-शान्ति और प्रगति होने की बात सोची जा रही है और उसी के लिए सब कुछ किया जा रहा है पर साथ ही हमें यह भी सोच लेना चाहिए कि समृद्धि तभी उपयोगी हो सकती है जब उसके साथ-साथ भावनात्मक स्तर भी ऊँचा उठता चले, यदि भावनाएँ निकृष्ट स्तर की रहें तो बढ़ी हुई सम्पत्ति उलटी विपत्ति का रूप धारण कर लेती है । दुर्बुद्धिग्रस्त मनुष्य अधिक धन पाकर उसका उपयोग अपने दोष-दुर्गुण बढ़ाने में ही करते हैं । अन्न का दुर्भिक्ष पड़ जाने पर लोग पत्ते और छालें खाकर जीवित रह लेते हैं पर भावनाओं का दुर्भिक्ष पडऩे पर यहॉँ नारकीय व्यथा-वेदनाओं के अतिरिक्त और कुछ शेष नहीं रहता ।
सम्पन्न
लोगों का जीवन निर्धनों की अपेक्षा कलुषित होता है, उसके विपरीत
प्राचीनकाल में ऋषियों ने अपने जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया
था कि गरीबी की जीवन व्यवस्था में भी उत्कृष्ट जीवन जीना संभव हो सकता है ।
यहाँ सम्पन्नता एवं समृद्धि का विरोध नहीं किया जा रहा है, हमारा प्रयोजन
केवल इतना ही है भावना स्तर ऊँचा उठने के साथ-साथ समृद्धि बढ़ेगी तो उसका
सदुपयोग होगा और तभी उससे व्यक्ति एवं समाज की सुख-शान्ति बढ़ेगी । भावना
स्तर की उपेक्षा करके यदि सम्पत्ति पर ही जोर दिया जाता रहा तो दुर्गुणी
लोग उस बढ़ोत्तरी का उपयोग विनाश के लिए ही करेंगे । बन्दर के हाथ में गई
हुई तलवार किसी का क्या हित साधन कर सकेगी ?
सोमवार, दिसंबर 05, 2011
यह प्यार क्या है ?
जब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता. प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ ?
प्यार
की परिभाषा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि प्यार को अनुभव तो कर सकते है.
लेकिन बता नहीं सकते जैसे-गूंगे को गुड खिला दो तब गूँगा गुड की मिठास को
जान जायेगा.मगर उसको अगर पूछो तब वह बता नहीं सकता है. ठीक इसी तरह प्यार
है. प्यार का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होता है.
इसलिए प्यार को एक परिभाषा में बांधना मुश्किल है. आप प्यार को एक लगाव कह
सकते है. एक अशक्ति ही है प्यार. धार्मिक लोग उसे मोह कहते है.
प्यार के अनेक रूप होते है जैसे-प्यार, प्रेम, आकर्षण, त्याग, बलिदान, तपस्या, दया, सम्मान, विश्वास, अहसास, स्नेह, जिंदगी, सजा, ईनाम, कला, जनून, कलंक, पूजा, कफन, बदनामी, समर्पण, अंधा, सौदर्य, दोस्ती, सच्चाई, मिलन, हवस, डर, वासना, इंसानियत, समाज, ईश्वर, ममता, पागलपन, तकलीफ, मौत, इच्छा, देखभाल, धोखा, नशा, दर्द, समझौता, शहर, मुसीबत, स्वप्न, खतरा, हथिहार, बीमारी, लडूडू, दवा, इबारत, दीवानापन, जिंदगानी, जहर, माता-पिता, जन्नत, मंजिल, हार-जीत, खेल, तन्हाई, जवानी, तोहफ़ा, जादू, नाज-नखरे, उपहार, चमत्कार आदि प्यार के ही कुछ रूप है. प्यार एक आजाद पंछी है. जो पूरे आसमां में स्वतंत्र उड़ता है. जो किसी के रोके रुकता नहीं है. प्यार एक आग का दरिया है जो डूबकर पार किया जाता है. प्यार एक कठिन डगर है जिसपर कोई साहसी ही चल सकता है.
प्यार के अनेक रूप होते है जैसे-प्यार, प्रेम, आकर्षण, त्याग, बलिदान, तपस्या, दया, सम्मान, विश्वास, अहसास, स्नेह, जिंदगी, सजा, ईनाम, कला, जनून, कलंक, पूजा, कफन, बदनामी, समर्पण, अंधा, सौदर्य, दोस्ती, सच्चाई, मिलन, हवस, डर, वासना, इंसानियत, समाज, ईश्वर, ममता, पागलपन, तकलीफ, मौत, इच्छा, देखभाल, धोखा, नशा, दर्द, समझौता, शहर, मुसीबत, स्वप्न, खतरा, हथिहार, बीमारी, लडूडू, दवा, इबारत, दीवानापन, जिंदगानी, जहर, माता-पिता, जन्नत, मंजिल, हार-जीत, खेल, तन्हाई, जवानी, तोहफ़ा, जादू, नाज-नखरे, उपहार, चमत्कार आदि प्यार के ही कुछ रूप है. प्यार एक आजाद पंछी है. जो पूरे आसमां में स्वतंत्र उड़ता है. जो किसी के रोके रुकता नहीं है. प्यार एक आग का दरिया है जो डूबकर पार किया जाता है. प्यार एक कठिन डगर है जिसपर कोई साहसी ही चल सकता है.
प्यार
जितना खुबसूरत शब्द है यह उतना ही इंसान को अच्छा भी बनाता है.प्यार जीना
सिखाता है. क्या यह प्यार है? जब आपका आंसू किसी और की आँख में आये. वो
प्यार है. प्यार जो हर पल आपका ख्याल रखे वो प्यार है. प्यार जो खुद भूखा
रहकर पहले आपको खिलाये वो प्यार है. प्यार जो रात-रात भर जागकर आपको सुलाए
वो प्यार है. जो अगर चोट आपको लगे तब दर्द उसको कहूँ या किसी दूसरे को हो
वो प्यार है और हम ऐसे प्यार की अहमियत नहीं समझ पाते हैं. प्यार न तो दिल
का चैन है, न दिल का रोग. प्यार निभाना उन लोगो के लिए कठिन नहीं है, जो
सच्चे दिल से प्यार करते है. प्यार एक अनमोल रत्न है. जिसने इसकी परख कर
ली, वो जिन्दगी में हर पल खुश और जो परख न कर पाया वो गम में जीते जी
जिन्दा लाश बन जाता है. प्यार क्या है ? क्या जानते है ? कैसे होता है ?
कितनी सारी बाते है ? प्यार पूजा है. प्यार भगवान् का ही दूसरा नाम है.
करते हम प्यार की बात है, लेकिन प्यार से ही दूर भागते है.
प्यार, जिंदगी की सबसे बड़ी सजा है और ईनाम भी. बस कर्म सबके
अपने-अपने होते है. प्यार किसे सजा के रूप में मिलता है और किसे ईनाम के
रूप में. प्यार कुछ
पाने का नाम नहीं-प्यार में सिर्फ दिया जाता है कुछ पाने की भावना रखना
प्यार नहीं स्वार्थ ही कहलाता है. अत: प्यार को कोई परिभाषित नहीं कर सकता
हैं. प्यार को परिभाषित करना एक असंभव कार्य है, क्योंकि प्यार अनन्त है.
बुधवार, नवंबर 23, 2011
ध्यान के लिए जड़ी बूटियां............
ध्यान
शुरू करने से पहले मानसिक शांति की ज़रूरत होती है और इसके लिए जड़ी बूटियों
बहुत ही फायदेमंद होती हैं। जड़ी बूटियों के प्रयोग से व्यक्ति की थकान,
चिन्ता कम होती है। व्यक्ति अपनी सुविधा और पसन्द के अनुसार किसी भी जड़ी
बूटी का प्रयोग कर सकता हैं। जड़ी बूटियों से चिकित्सा के बारे में तो हम
सालों से सुनते आये हैं। लेकिन जड़ी-बूटी की शुरूवात में आप पहले कोई भी
जड़ी बूटी चुन सकते हैं और फिर जड़ी बूटियों
का काम्बिनेशन में उपयोग कर सकते हैं क्योंकि जड़ी बूटियों के प्रभाव हमेशा
सिनर्जेस्टिक होते हैं। कुछ जड़ी बूटियों से मेडिटेशन में भी लाभ मिल सकता
है:
ब्राह्मी:- ब्राह्मी नामक जड़ी-बूटी, यह दिमाग के टानिक
जैसी है। यह दिमाग को शांति और स्पष्टता प्रदान करती है और याद्दाश्त को
मजबूत करने के साथ ध्यान करने में भी मदद करता है। ब्राह्मी से हमारे चक्र भी
जागृत हो जाते हैं और दिमाग के बायें और दायें हेमिस्फियर संतुलित रहते
हैं। आधे चम्मच ब्राह्मी के पावडर को गरम पानी में मिला लें और स्वाद के लिए
इसमें शहद मिला लें और मेडिटेशन से पहले इसे पीयें।
जटामासी:- जटामासी जैसी जड़ी-बूटी, परेशान और उत्तेजित दिमाग को शांति
पहुंचाता है। यह हिमालय पर पायी जाती है और इसमें वैलेरियन जैसे ही लक्षण
पाये जाते हैं। यह याद्दाश्त बढ़ाने में भी सहायक होता है। 1 चम्मच जटामासी
को 1 कप दूध में मिलाकर 5 मिनट तक छोड़ दें और सुबह पी लें।
हिबिस्कस:- इसका संस्कृत नाम जपा है और इसका अर्थ है मंत्र का बार बार
उच्चारण। इस मंत्र की मदद से भी ध्यान में मन लगता है। एक चौथाई फूल को
डेढ़ पाव ठंडे पानी में मिला दें और इसे एक कप गरम चाय के साथ पीयें।
शंख पुष्पी:- शंख पुष्पी, यह हमारी बुद्धि को बढ़ाने के साथ-साथ दिमाग में
सर्कुलेशन करके हमारी रचनात्मकता को भी बढ़ावा देता है। आयुर्वेद के पुराने
ग्रंथचरक समहिता के अनुसार जड़ी बूटियों से हमारी याद करने की क्षमता और
सीखने की क्षमता बढ़ती है जिससे मेडिटेशन में मदद मिलती है। आधे चम्मच शंख
पुष्पी को एक कप गरम पानी में मिला कर लें। यह भी ध्यान में प्रभावी हैं।
दर्शन तेरा.......................
दर्शन तेरा जिस दिन पाऊँ, हर चिन्ता मिट जाये ,
जीवन मेरा इन चरणों में, आस की ज्योत जगाये,
ओ,ओ रे मुरली धर मेरी बाँहें पकड़ लो श्याम रे ,,
मेरी बांह पकड़ लो तुम ,
चले आओ कान्हा ,
की मैं तो चलना,
न .जानू,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं तो नश्वर ,
मूर्ख ..नट खट रानी,
चले आओ कान्हा आ के ,
दर्शन दिखाओ न,
ओ मुरली धर मेरी बांह पकड़ लो तुम ...........
.,,,,,,,,,,,,,जय श्री राधे क़ृष्ण,,,,,,,,,,,,,,
रविवार, नवंबर 20, 2011
नूर का चरण स्पर्श........
चाँद भी हैरान है, देख धरती पे ऐसा नूर............
सूरज का घमंड भी, हो गया चूर-चूर................
तारे जिससे मिलने को हो गए मजबूर..............
लज्जित होकर हर पुष्प, झुक,गया जब पाया ऐसा नूर..............
फटा कलेजा अंबर का, जब पाया खुद से दूर..................
धरती पावन हो गई पल में, चूमे चरण भरपूर.................
चलती पवन भी झूम गई, नज़र में आया जब वो हूर.................
गंगा ने भी चरण पखारे, न रह पायी दूर...................
ढूँढ सका न कोई, माता रानी तुम सा नूर.....................
नमन तुझे ऐ माता रानी, तू जगत की नूर..............
नूर के चरण स्पर्श मात्र से दर्द हो जाता है दूर..........
जय माता दी जपते रहो,सुबह शाम भरपूर.....
जय माता दी जपते रहो,सुबह शाम भरपूर.....
जय माता दी!!!जय माता दी!!!जय माता दी!!!
शनिवार, नवंबर 19, 2011
खाने से जुड़ी बस इस एक आदत को सुधार ले, वजन कम होने लगेगा......
अधिकतर लोग जो मोटापा बढऩे से परेशान
रहते हैं। वे मोटापा कम करने के लिए अपनी दिनचर्या को बंदिशो से बांध लेते
हैं। मोटापा घटाने के लिए वे सिर्फ अपने आहार पर ध्यान देते हैं। लेकिन
मोटापा घटाने के लिए सिर्फ आहार पर ध्यान देने से काम नहीं चलता बल्कि
मोटापा घटाने के लिए अपने आहार पर तो हम सभी ध्यान देते हैं, लेकिन आहार के
सेवन का क्या तरीका है, यह बात अधिक महत्व रखती है।
कहा जाता है खाना हमेशा धीरे-धीरे और चबाकर खाना चाहिए। खाने के हर एक कोर को कम से कम ३२ बार चबाना चाहिए। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर रखते हैं और पूरी तरह चबाकर खाना खाते हैं। विशेषकर महिलाओं में ये आदत ज्यादा देखी जाती है कि वे अपने काम में बिजी होने के कारण या घर और बाहर के काम के अधिक बोझ के चलते अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर अधिक लापरवाह होती है हालांकि ये आदतें पुरुषों में भी होती हैं।
कहा जाता है खाना हमेशा धीरे-धीरे और चबाकर खाना चाहिए। खाने के हर एक कोर को कम से कम ३२ बार चबाना चाहिए। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो खाना खाते समय पूरा ध्यान खाने पर रखते हैं और पूरी तरह चबाकर खाना खाते हैं। विशेषकर महिलाओं में ये आदत ज्यादा देखी जाती है कि वे अपने काम में बिजी होने के कारण या घर और बाहर के काम के अधिक बोझ के चलते अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर अधिक लापरवाह होती है हालांकि ये आदतें पुरुषों में भी होती हैं।
लेकिन
ये बहुत कम लोग जानते हैं कि खाने में जल्दबाजी करने से सिर्फ कब्ज
एसीडिटी और अपच की शिकायत ही नहीं होती बल्कि तेजी से भोजन करना आपको
ओवरवेट भी बना सकता है।जी हां सुनने में भले ही थोड़ा अजीब लगे लेकिन अगर
आप खाने को देखते ही उस पर टूट पड़ते हैं और तेजी से उसे चबाने पर ध्यान न
देते हुए खाने लगते हैं तो आप चाहे कितनी ही डाइटिंग कर ले दुबले नहीं हो
सकते हैं। वाशिंगटन में किए गए एक शोध के अनुसार जो कि हेल्थ एजुकेशन एंड
बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित हुआ जल्दबाजी में खाना खाने से या भोजन की
प्रति अधिक सर्तकता रखने से भी अधिक तेजी से वजन बढऩे लगता है।
मंगलवार, नवंबर 15, 2011
अनोखा प्राणायाम: ये होता है आधी रात में, मिलती है जादूई ताकत....
आमतौर पर आपने सुना होगा कि प्राणायाम सुबह जल्दी उठ कर किया जाना चाहिए लेकिन हम आपको ऐसे प्राणायाम के बारे में बता रहे हैं जो आधी रात में करना चाहिए।
ये पढ़ कर आपको आश्चर्य
तो होगा कि क्या ये सच है? जी हां ये सच है। हम आपको रात में होने वाले
ऐसे प्राणायाम के बारें में बता रहे हैं जिससे आपको आसानी से जादूई ताकत
मिल सकती है और आपको भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही
पता चल जाएगा। योगसूत्रों के अनुसार प्राणायाम मन को शांत रखने का
सर्वश्रेष्ठ उपाय है। साथ ही इससे किसी भी कार्य को करने की एकाग्रता बढ़ती
है।
भ्रामरी प्राणायाम एक ऐसा प्राणायाम है जिसे आप सिर्फ रात को
ही कर सकते हैं। इसके रोजाना करने से दिमाग में ऐसे न्यूरोंस एक्टीव हो
जाते हैं जिससे आपको भविष्य में होने वाली अच्छी और बुरी घटनाओं का पहले ही पता चल जाता है।
कैसे करें ये चमत्कारी प्राणायाम .....
योगियों
के अनुसार यह प्राणायाम रात्रि के समय किया जाना चाहिए। जब आधी रात बीत
जाए और किसी भी जीव-जंतु की कोई आवाज सुनाई ना दे। उस समय किसी भी
सुविधाजनक आसन में बैठकर तीन उंगुली से आँख बंद करना अगूंठा से कान बंद करना तथा पहली उंगली को कपाल पर जहाँ चन्दन करते है उसके अगल-बगल रखकर,ॐ का नाद मुंह बंद करके भंवरे की गुंजन की तरह करना ............
क्या चमत्कार होता है इस प्राणायाम से ..........
योगियों
के अनुसार इस आसन से मन की चंचलता आपका दिमाग भटकता बंद हो जाता है। सिर
के बीच में होने वाले सहस्त्रार चक्र पर कंपन होती है। इससे भविष्य में
होने वाली घटनाओं का आसानी से पता चल जाता है। अगर कुछ अच्छा या बुरा होने
वाला है तो पहले ही पता चल जाता है। लगातार ये प्राणायाम करने से तनाव और अनिद्रा दूर
होता है और दैवीय शक्ति मिलती है।
शनिवार, नवंबर 12, 2011
सफलता की राह पर आने वाली कुछ बाधाये.....
{1} Ego
{2} Fear of failure / success: lack of self-esteem
{3} Lack of formalised goals
{4} Life changes
{5} Procrastination
{6} Family responsibilities
{7} Financial security issues
{8} Lack of focus ,being muddled
{9} Giving up vision for promise of money
{10} Doing to much alone
{11} Overcommitment
{12} Lack of commitment
{13} Lack of trining
{14} Lack of persistence
{15} Lack of priorities
शनिवार, नवंबर 05, 2011
विज्ञान की तुला पर मांसाहार..........
मांसाहार के कारण पर्यावरण संदूषित एवं असंतुलित हो रहा है.
वन मरुस्थल में
बदल रहे हैं. जलस्रोत सूखते जा रहे हैं, अथवा
यूं कहिये काफी हद तक नीचे
उतारते जा रहे हैं. पृथ्वी अपनी
उर्वरक-शक्ति खोती जा रही है. आकाश धरती
एवं समुद्र मांसाहार
के उत्पादन तथा रासायनिक विषों से प्रदूषित हो रहे
हैं. चारों ओर
प्रदूषण मौत का रूप धारण कर मंडरा रहा है, जिसके दुष्प्रभाव
से
आम आदमी की जीवन-शक्ति एवं आरोग्य, पल-पल क्षीण होता जा
रहा है और
मनुष्य स्वयं को एवं आगामी पीढ़ी को आँखे मूंदकर
बेरहमी से जमीन पर अच्छी
तरह पैर टिकाने से पूर्व ही विनाश
के महागर्त में ढकेल रहा है. "
मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या ही नहीं समस्याओं की कतार कड़ी कर देता है, जिनमें से गंभीर समस्या है - गुर्दे में पथरी और आवश्यकता से अधिक प्रोटीन, जो न केवल कैल्शियम के संचित कोष को खाली करता है, अपितु किडनी से बेवजह अधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करता है.
मांसाहार कब्ज का जनक है, कारण वह फाइबर रहित होने से आँतों की सफाई करने में असमर्थ है; उलटे वह सड़ांध पैदा करता है. जिन पशु-पक्षियों से मांस उत्पादित किया जाता है, उन बीमार पशुओं के रोग मुफ्त में मांसाहारी के पेट में उतर जाते हैं.
मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन समस्या ही नहीं समस्याओं की कतार कड़ी कर देता है, जिनमें से गंभीर समस्या है - गुर्दे में पथरी और आवश्यकता से अधिक प्रोटीन, जो न केवल कैल्शियम के संचित कोष को खाली करता है, अपितु किडनी से बेवजह अधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त करता है.
मांसाहार कब्ज का जनक है, कारण वह फाइबर रहित होने से आँतों की सफाई करने में असमर्थ है; उलटे वह सड़ांध पैदा करता है. जिन पशु-पक्षियों से मांस उत्पादित किया जाता है, उन बीमार पशुओं के रोग मुफ्त में मांसाहारी के पेट में उतर जाते हैं.
मंगलवार, नवंबर 01, 2011
मॉंस मनुष्यता को त्याग कर ही खाया जा सकता है........
करुणा की प्रवृत्ति अविछिन्न है । उसे मनुष्य और पशुओं के बीच विभाजित नहीं किया जा सकता । पशु-पक्षियों के प्रति बरती जाने वाली निर्दयता मनुष्यों के साथ किये जाने वाले व्यवहार को भी प्रभावित करेगी । जो मनुष्यों से प्रेम और सद्व्यवहार का मर्म समझता है वह पशु-पक्षियों के प्रति निर्दय नहीं हो सकता । भारत यात्रा करने वाले सुप्रसिद्ध फाह्यान, मार्कोपोलो सरीखे विदेशी यात्रियों ने अपनी भारत यात्राओं के विशद् वर्णनों में यही लिखा है - भारत में चाण्डालों के अतिरिक्त और कोई सभ्य व्यक्ति माँस नहीं खाता था । धार्मिक दृष्टि से तो इसे सदा निन्दनीय पाप कर्म बताया जाता रहा है । बौद्ध और जैन धर्म तो प्रधानतया अहिंसा पर ही आधारित है । वैष्णव धर्म भी इस सम्बन्ध में इतना ही सतर्क है । वेद, पुराण, स्मृति, सूत्र आदि हिन्दू धर्म-ग्रंथों में पग-पग पर मॉंसाहार की निन्दा और निषेध भरा पड़ा है । बाइबिल में कहा गया है - ऐ देखने वाले देखता क्यों है, इन काटे जाने वाले जानवरों के विरोध में अपनी जुबान खोल । ईसा कहते थे -किसी को मत मार । प्राणियों की हत्या न कर और मॉंस न खा । कुरान में लिखा है - हरा पेड़ काटने वाले, मनुष्य बेचने वाले, जानवरों को मारने वाले और पर स्त्रीगामी को खुदा माफ नहीं करता । जो दूसरों पर रहम करेगा, वही खुदा की रहमत पायेगा । हमें बढ़ते हुए मॉंसाहार की प्रवृति में होने वाली हानियों पर विचार करना चाहिए और अपनी मूल प्रकृति एवं प्रवृत्ति के अनुकूल आचरण करना चाहिए ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नष्ट होने से बच सके । निष्ठुरता और क्रूरता का दूसरा नाम ही माँसाहार है । अच्छा हो हम अपनी प्रकृति में से इन तत्त्वों को निकाले अन्यथा हमारा व्यवहार मनुष्यों के प्रति भी इन्हीं दुर्गुणों से भरा होगा और संसार में नरक के दृश्य दीखेंगे ।
सोमवार, अक्तूबर 31, 2011
ब्रूस ली उवाच ............
Q - सबसे ऊँचे दर्जे की तकनीक कौन सी है ?
Ans -ऐसी कोई तकनीक ही नहीं है .
Q -क्या ख्याल आते है ? जब सामने दुश्मन होता है .
Ans -कोई दुश्मन नहीं होता
Q -क्यों ?
Ans -क्योंकि "मै" नाम का कोई लब्ज नहीं होता ....एक अच्छा मुकाबला होना चाहिए किसी नाटक की तरह ,पर संजीदगी से खेला हुआ ,एक अच्छा मार्शल आर्टिस्ट बेचैन नहीं होता ,तैयार रहता है,और जो करता है वो सोच समझ कर करता है हरदम चौकने रहता है.जब विरोधी फैलता है तो "मै" सिकुड़ जाता है ,और जब वो सिकुड़ता है तो "मै" फ़ैल जाता है और जब मौका मिलता है तो "मै" बार नहीं करता ये शरीर के अंग खुद ब खुद वार कर देते है और ये हमेशा याद रखना की दुश्मन सिर्फ छलावा दिखाता है,मायाजाल बिछाता है ,जिसके पीछे वो अपना असली मकसद छिपाता है,मायाजाल मिटा दो दुश्मन मिट जायेगा ..........
विशेष :-एक अच्छे मार्शल आर्टिस्ट को अपनी जिम्मेदारियाँ खुद निभानी चाहिए ,और अपने किये का फल हमेशा स्वीकार करना चाहिए
मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011
शनिवार, अक्तूबर 15, 2011
विचार शक्ति ही भाग्य रेखा.............
कहा जाता है कि खोपड़ी में मनुष्य का भाग्य लिखा रहता है।
इस भाग्य को ही
कर्म लेख भी कहते हैं । मस्तिष्क में रहने
वाले विचार ही जीवन का स्वरूप
निर्धारित करने और
सम्भावनाओं का ताना-बाना बुनते हैं । इसलिए प्रकारान्तर
से भी यह बात सही है कि भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में
लिखा रहता है । कपाल
अर्थात् मस्तिष्क । मस्तिष्क अर्थात्
विचार । अत: मानस शास्त्रप के
आचार्यों ने उचित ही संकेत
किया है कि भाग्य का आधार हमारी विचार पद्धति ही
हो सकती है ।
विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है ।
विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है ।
इसलिए भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में लिखा रहता है,
जैसी भाषा का प्रयोग
पुरातन ग्रंथ से करते हुए भी तथ्य यही
प्रकट होता है कि कर्तृत्व अनायास ही
नहीं बन पड़ता, उसकी
पृष्ठभूमि विचार शैली के अनुसार धीरे-धीरे मुद्दतों
में बन पाती है ।
बुधवार, अक्तूबर 12, 2011
कर्म के साथ भावना को भी जोडें.......
भोजन से उर्जा मिलती है, नींद से उर्जा बचती है, व्यायाम से उर्जा जगती
है , फिर हम इस उर्जा को खर्च करते है ...
दिनभर
लोहा पीटने वाले लुहार की अपेक्षा अखाड़े में
दो घण्टे कसरत करने वाला
पहलवान अधिक परिपुष्ट
पाया जाता है।इसका कारण व्यायाम के साथ जुड़ी हुई
उत्साहवर्द्धक भावना है।कसरत करते समय यह मान्यता
रहती है कि हम
स्वास्थ्य साधना कर रहे हैं और इस आस्था
का मनोवैज्ञानिक असर ऐसा चमत्कारी
होता है कि देह ही
परिपुष्ट नहीं होती,मन की हिम्मत तथा सशक्तता भी बहुत
बढ़ जाती है ।
सोमवार, सितंबर 26, 2011
शिव पंचाक्षर स्त्रोत.....
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय चंद्रार्क
वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ शिवलोकं
वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
शिव पंचाक्षर स्त्रोत भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है।
शुक्रवार, सितंबर 23, 2011
रहस्य ...............
हमारे
चित्त की स्थिति हम जैसी बनाए रखेंगे, यह दुनिया भी ठीक वैसी बन जाती है। न
मालूम कौन-सा चमत्कार है कि जो आदमी भला होना शुरू होता है, यह सारी
दुनिया उसे एक भली दुनिया में परिवर्तित हो जाती है। और जो आदमी प्रेम से
भरता है, इस सारी दुनिया का प्रेम उसकी तरफ प्रवाहित होने लगता है। और यह
नियम इतना शाश्वत है कि जो आदमी घृणा से भरेगा, प्रतिकार में घृणा उसे
उपलब्ध होने लगेगी। हम जो अपने चारों तरफ फेंकते हैं, वही हमें उपलब्ध हो
जाता है। इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है।
तो चौबीस घंटे उन
क्षणों का स्मरण करें, जो जीवन में अदभुत थे, ईश्वरीय थे। वे छोटे-छोटे
क्षण, उनका स्मरण करें और उन क्षणों पर अपने जीवन को खड़ा करें। और उन
बड़ी-बड़ी घटनाओं को भी भूल जाएं, जो दुख की हैं, पीड़ा की हैं, घृणा की हैं,
हिंसा की हैं। उनका कोई मूल्य नहीं है। उन्हें विसर्जित कर दें, उन्हें झड़ा
दें। जैसे सूखे पत्ते दरख्तों से गिर जाते हैं, वैसे जो व्यर्थ है, उसे
छोड़ते चले जाएं; और जो सार्थक है और जीवंत है, उसे स्मरणपूर्वक पकड़ते चले
जाएं। चौबीस घंटे इसका सातत्य रहे। एक धारा मन में बहती रहे शुभ की,
सौंदर्य की, प्रेम की, आनंद की।
तो आप क्रमशः पाएंगे कि जिसका आप
स्मरण कर रहे हैं, वे घटनाएं बढ़नी शुरू हो गयी हैं। और जिसको आप निरंतर साध
रहे हैं, उसके चारों तरफ दर्शन होने शुरू हो जाएंगे। और तब यही दुनिया
बहुत दूसरे ढंग की दिखायी पड़ती है। और तब ये ही लोग बहुत दूसरे लोग हो जाते
हैं। और ये ही आंखें और ये ही फूल और ये ही पत्थर एक नए अर्थ को ले लेते
हैं, जो हमने कभी पहले जाना नहीं था। क्योंकि हम कुछ और बातों में उलझे हुए
थे। तो मैंने जो कहा, ध्यान में जो अनुभव हो--थोड़ा-सा भी प्रकाश,
थोड़ी-सी भी किरणें, थोड़ी-सी भी शांति--उसे स्मरण रखें। जैसे एक छोटे-से
बच्चे को उसकी मां सम्हालती है, वैसे जो भी छोटी-छोटी अनुभूतियां हों,
उन्हें सम्हालें। उन्हें अगर नहीं सम्हालेंगे, वे मर जाएंगी। और जो जितनी
मूल्यवान चीज होती है, उसे उतना सम्हालना होता है।जानवरों के भी
बच्चे होते हैं, उनको सम्हालना नहीं होता। और जितने कम विकसित जानवर हैं,
उनके बच्चों को उतना ही नहीं सम्हालना होता, वे अपने आप सम्हल जाते हैं।
जैसे-जैसे विकास की सीढ़ी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे आप पाते हैं--अगर मनुष्य
के बच्चे को न सम्हाला जाए, वह जी ही नहीं सकता। मनुष्य के बच्चे को न
सम्हाला जाए, वह जी नहीं सकता। उसके प्राण समाप्त हो जाएंगे। जो जितनी
श्रेष्ठ स्थिति है जीवन की, उसे उतने ही सम्हालने की जरूरत पड़ती है। तो
जीवन में भी जो अनुभूतियां मूल्यवान हैं, उनको उतना ही सम्हालना होता है।
उतने ही प्रेम से उनको सम्हालना होता है। तो छोटे-से भी अनुभव हों, उन्हें
सम्हालें; वैसे ही जैसे...। आपने पूछा, कैसे सम्हालें? अगर मैं आपको कुछ
हीरे दे दूं, तो आप उन्हें कैसे सम्हालेंगे? अगर आपको कोई बहुमूल्य खजाना
मिल जाए, उसे आप कैसे सम्हालेंगे? उसे आप कैसे सम्हालेंगे? उसे आप कहां
रखेंगे? उसे आप छिपाकर रखना चाहेंगे; उसे अपने हृदय के करीब रखना
चाहेंगे।..........ओशो
बुधवार, सितंबर 21, 2011
''मौत'' इतनी हसीन होती है...........
मैंने अपने मौत पे क्या खूब कहा ----
ज़िन्दगी में दो पल कोई मेरे पास न बैठा ,,,
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे .........कोई
तौफा न मिला आज तक मुझे और आज
फूल ही फूल दिए जा रहे थे .....तरस गए
हम किसी के हाथ से दिए एक कपडे को
और आज नए -2 कपडे ओढ़ाये जा रहे थे ,,,
दो कदम साथ चलने को तैयार न था कोई ,,,
और आज काफिला बनकर जा रहे थे ........
आज पता चला ''मौत'' इतनी हसीन होती है ,,,
कमबख्त ''हम'' तो यु ही जियें जा रहे थे ,,,,,,
सोमवार, सितंबर 19, 2011
प्यार हर सम्बन्ध का आधार है........
प्यार हर सम्बन्ध का आधार है
प्यार से मन को मिला विस्तार है
ज़िन्दगी निःसार है बिन प्यार के
प्यार जीवन का सहज सिंगार है।
प्रेम-पथ की यात्रा अविराम है
सार्थक लेकिन सदा निष्काम है
प्यार का अभिप्राय चंचलता नहीं,
प्यार अविचल साधना का नाम है।
प्यार है अनमोल धन स्वीकार कर
मत कभी इस सत्य से इनकार कर
क्या पता भगवान कब किसको मिले,
बस अभी इंसान से तू प्यार कर।
रविवार, सितंबर 11, 2011
माया क्या है ...................
शरीर सुख के लिए अन्य मूल्यवान पदार्थों को खर्च
कर देते हैं कारण यही है कि वे मूल्यवान पदार्थ शरीर
सुख के मुकाबले में कमतर जँचते हैं। लोग शरीर
सुख की आराधना में लगे हुए हैं परन्तु एक बात
भूल जाते हैं कि शरीर से भी ऊँची कोई वस्तु है ।
वस्तुत: आत्मा शरीर से ऊँची है। आत्मा के आनन्द
के लिए शरीर या उसे प्राप्त होने वाले सभी सुख तुच्छ हैं।
अपने दैनिक जीवन में पग- पग पर मनुष्य 'बहुत के
लिये थोड़े का त्याग' की नीति को अपनाता है, परन्तु
अन्तिम स्थान पर आकर यह सारी चौकड़ी भूल जाता है।
जैसे शरीर सुख के लिए पैसे का त्याग किया जाता है वैसे
ही आत्म - सुख के लिए शरीर सुख का त्याग करने में
लोग हिचकिचाते हैं, यही माया है। पाठक इस बात को
भली भाँति जानते हैं कि अन्याय, अनीति, स्वार्थ,
अत्याचार, व्यभिचार, चोरी, हिंसा, छल, दम्भ, पाखण्ड,
असत्य, अहंकार, आदि से कोई व्यक्ति धन इकट्ठा कर
सकता है, भोग पदार्थों का संचय कर सकता है, इन्द्रियों
को कुछ क्षणों तक गुदगुदा सकता है, परन्तु आत्म-सन्तोष
प्राप्त नहीं कर सकता।
तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन.............
तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन,कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा,माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है,तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते,तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं,और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे,सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में,ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई,सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
कितनी गहरी है अदभुत-सी,तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है,तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी,मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।
मेरी लघु आकुलता से ही,कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में,तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला,तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
तुम से तन मन जीवन पाया,तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता,काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा,तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।
शुक्रवार, सितंबर 09, 2011
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