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स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कहा करते थे - दो प्रकार की मक्खियाँ होती है !
एक तो शहद की मक्खियाँ, जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं खाती और दूसरी
साधारण मक्खियाँ , जो शहद पर भी जा बैठती हैं और यदि सड़ता हुवा घाव
दिखलाई पड़े तो तुरंत शहद को छोड़कर उस पर भी जा बैठती हैं ! इसी प्रकार इस
संसार में दो तरह के स्वभाव के लोग होते हैं एक जो ईश्वर में अनुराग रखते
है, वे ईश्वर की चर्चा के सिवाय कोई दूसरी बात करते ही नहीं और दूसरे जो
संसार मे आसक्त जीव हैं, वे ईश्वर की बात सुनते-सुनते यदि किसी स्थान पर
विषय की बातें होती हों तो तुरन्त भगवान की चर्चा छोड़कर उसी में संलग्न हो
जाते है ! पतन एक सहज गति क्रम है, उठना पराक्रम है ! अचेतन की पाशविक
प्रवृत्तियां बार-बार मनुष्य को घसीट कर विषयी बनने की ओर प्रवृत्त करती
हैं ! यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इन पर किस प्रकार अंकुश लगा पाता है व
प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग कर पाता है !!
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