"क्या हम ईश्वर को मानते है ?
ईश्वर
और परलोक आदि के मानने की बात मुँह से न कहिये।
जीवन से न कहकर मुँह से
कहना अपने को और दुनिया
को धोखा देना है । हममें से अधिकांश ऐसे धोखेबाज ही
हैं।
इसलिये हम कहा करते है कि हजार में नौ-सौ निन्यानवे
व्यक्ति ईश्वर को
नहीं मानते । मानते होते तो जगत में पाप
दिखाई न देता ।
अगर हम
ईश्वर को मानते तो क्या अँधेरे में पाप करते ?
समाज या सरकार की आँखों में
धूल झोंकते ? उस समय
क्या यह न मानते कि ईश्वर की आँखों में धूल नहीं झोंकी
गई ?
हममें से कितने आदमी ऐसे हैं जो दूसरों को धोखा देते समय
यह याद
रखते हों कि ईश्वर की आँखें सब देख रही हैं ? अगर
हमारे जीवन में यह बात
नहीं है, तो ईश्वर की दुहाई देकर
दूसरों से झगड़ना हमें शोभा नहीं देता ।
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