गुरुवार, जुलाई 05, 2012

"क्या हम ईश्वर को मानते है ?






















 

 

ईश्वर और परलोक आदि के मानने की बात मुँह से न कहिये।

 जीवन से न कहकर मुँह से कहना अपने को और दुनिया 

को धोखा देना है । हममें से अधिकांश  ऐसे धोखेबाज ही हैं।

 इसलिये हम कहा करते है कि हजार में नौ-सौ निन्यानवे

 व्यक्ति ईश्वर को नहीं मानते । मानते होते तो जगत में पाप

 दिखाई न देता ।

 अगर हम ईश्वर को मानते तो क्या अँधेरे में पाप करते ?

 समाज या सरकार की आँखों में धूल झोंकते ? उस समय

 क्या यह न मानते कि ईश्वर की आँखों में धूल नहीं झोंकी गई ? 

 हममें से कितने आदमी ऐसे हैं जो दूसरों को धोखा देते समय

 यह याद रखते हों कि ईश्वर की आँखें सब देख रही हैं ? अगर 

 हमारे जीवन में यह बात नहीं है, तो ईश्वर की दुहाई देकर

 दूसरों से झगड़ना हमें शोभा नहीं   देता ।



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