गुरुवार, सितंबर 01, 2011

सब दिन होत न एक सामान ................













बल न बलि का चलने देता ,छल न छली का चलने देता 
कोई इसकी चाल न जाने ,हार गए सब बड़े सयाने
पार न पाते वेद पुराण -२, सब दिन होत न एक सामान 

    इनकी एक भूल से इनको ,पड़ा काटना गिन -गिन इनको 
    ऐसे ही बारह बरस बिताये ,पर्वत जैसे दुःख उठाये 
    रखा धर्म ध्वजा का मान -२,साधो समय बड़ा बलवान 
    शिर पर लटकी है तलवार ,पैरो तले बिछी अंगार 
    किन्तु धैर्य का साथ न छोड़ा ,दुखों से मन तनिक न मोड़ा
    मन में बसा रखा भगवान -२, सब दिन होत न एक सामान 
    पाँचों पाण्डव वन वन भटके -२,संग में  द्रौपदी भी न
    साधो समय बड़ा बलवान ,सब दिन होत न एक सामान

1 टिप्पणी:

  1. ने कहा…
    1 टिप्पणियाँ:
    गुड्डोदादी ने कहा…
    सब दिन होत न एक सामान
    हम ही ना रहेंगे ना रहेगा
    सर पे आसमान और भगवान
    बस हमारी इतनी ही शान
    जीते जीते यही देते है पैगाम
    शुभ कामनाएँ

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