गुरुवार, सितंबर 08, 2011

प्रेम...........


















यदि हम किसी को अपना प्रेम प्रदर्शित करना चाहते हैं ,तो जिससे प्रेम करते हैं ,उसे मुक्त कर दीजिये अपने पाशों से |उसकी नीव मज़बूत
कीजिये ,पूरा साथ दीजिये किन्तु मुक्त भाव से |प्रेम में न कुछ दिया जाता है और न ही कुछ लिया जाता है ,यह भी एक परमात्मा तत्त्व की अनुभूति है ,जो होने के बात स्वयं ही उसका भाव आ जाता है इसलिए यदि स्वयं में किसी को जकड़ कर ,भावनात्मक रूप से ,अथवा कार्यात्मक रूप से यह अंदेशा जब होने लगे की हमें किसी की  परवाह करनी चाहिए तो यह समझ लीजियेगा की आप प्रेम नहीं कर रहे हैं ,बल्कि आप स्वयं तो बंधे हुए हैं अपने स्वार्थ के लिए प्रेम की दिखावा करके दुसरे को बाँध रहे हैं और मज़े की बात यह है की यह बात आप जानते हुए भी नहीं जान पा रहे हैं |प्रेम स्वतंत्रता का नाम है ,जो स्वयं से स्वतंत्र हो गया ,जिसने स्वयं से सबको स्वतंत्र कर दिया ,जो इसका अर्थ तक नहीं जानता और न ही उसे इस बात की कोई परवाह की इसकी परिभाषा क्या है ,उसे इतना सोचने की भी बंधन नहीं वह प्रेमी है और आप उससे कुछ नहीं पूछ सकते ,उसका अनुशरण करके भी कुछ हद तक उसके साथ चलने की कोशिश कर सकते हो ,यह केवल
निर्मलता से उत्पन्न होता है |

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