आपको पता है कि साधु सन्यासी एकांत में, मानव सभ्यता से
दूर क्यों चले जाते है? किसलिए?जहाँ मनुष्यों की भीड़ होती है
वहां उतनी ही शुद्ध और अशुद्ध तरंगे विधमान रहती है | भीड़ में
प्रायःदूषित तरंगो की मात्रा ही अधिक पाई जाती है|आपने अनुभव
किया होगा कि भीड़ से लौटने पर आप थोड़े कम होकर लौटते है |
भीड़ थकाने वाली होती है | अगर कभी बहुत बेवकूफी का काम
करवाना हो तो अकेले एक आदमी से नहीं करवाया जा सकता |
भीड़ से करवाया जा सकता है | भीड़ बुद्धि को भी क्षीण कर देती है |
अगर मस्जिद में आग लगवानी हो , मंदिर तोडवानी हो तो भीड़
से करवाया जा सकता है | एक- एक से नहीं | आश्चर्य की बात तो
यह है कि आप उसी भीड़ में से किसी एक को कहे कि करो तो वह
कहेगा कि कुछ जंचता नहीं | लेकिन वही आदमी जब भीड़ में होगा
तब बुद्धि का तल नीचे गिर जायेगा | इसलिए संसार में जो भी पाप
हुए है, जो बड़े अत्याचार हुए है वो भीड़ ने किये है , व्यक्तियों ने नहीं |
तो तात्पर्य यह की साधू-सन्यासियों के जंगलो-पहाड़ो पर जाने का
एकमात्र उदेश्य यही है कि वे भीड़ के दूषित वातावरण और अशुद्ध उर्जा
तरंगो से बचे तथा भीड़ में होने वाले अपने उर्जा व्यय को भी बचाए |
यही कारण था कि मोहम्मद साहब पर्वत पर चले गए, बुद्ध और महावीर
जंगलो में भटक गए | क्राइस्ट का तो पुरे २३ साल का पता ही न चला |
ईसाइयो के पास कोई कथा ही नहीं है कि क्राइस्ट पुरे २३ साल तक कहाँ रहे,
क्या करते रहे | केवल ३ साल की कथा है और वह भी मरने के ३ साल पहले की |
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