गुरुवार, अगस्त 11, 2011

ये है अपना भारत देश ..............




















पहला मुद्दा
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एक सैनिक देश के लिए अपनी जान बिना शर्त दे देता है. यह भी नहीं सोचता की उसके बाद उसके परिवार का क्या होगा. उसके शहीद होने पर १ लाख की आर्थिक मदद का भरोसा दिलाती है सरकारी निति, पर सालों तक उस शहीद के घर वाले धक्के खाते रहते है दफ्तरों के, सेना मुख्यालय और कमान तो तुरंत सभी कुछ निबटा देती है पर, जब बात वो मदद देने की आती है तो उस शहीद की फाइल सरकारी दफ्तरों की मेजों और अलमारियों में धुल और धक्के खाती है. वही अगर कोई आतंकी मारा जाता है या पकड़ा जाता है सैनिक मुठभेड़ में तो उसकी गिरफ्तारी को सियासी रंग दे कार वोट बटोरती है. साथ ही अगर आतंकी मरता है तो उलटे सेना के सिपाही और अधिकारीयों को कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी और कोर्ट मार्शल तक झेलना पड़ता है.

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दूसरा मुद्दा
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लाखों टन अनाज सड़ता रहता है बारिश में, सरकार तब भी अपनी तिजोरी भरती है. गरीब और कुपोषित लोग भुखमरी से मरते रहते है. अनाज और दो जून की रोटी तो दूर,सर ढकने के लिए छत भी नहीं होता है उनके पास. सरकार अनाज तो सड़ा कर बर्बाद कर सकती है पर, भूखों का पेट नहीं भर सकती. वही दूसरी तरफ कसाब और गुरु
जैसे आतंकी देश को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, और भावनात्मक हानी पहुंचा रहे है और हमारी कर्तव्यहीन सरकार उन्हें प्रतिदिन पेट भर भोजन और सभी सहुल्तों के साथ सुरक्षा प्रदान कर रही है.

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तीसरा मुद्दा
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गाँधी ने कहा था भारत गावों में बसता है, सरकार गाँव उजाड़ कर शहर पर शहर बसा रही है. और से बात सिर्फ शहर बसने तक ही सिमित नहीं है, इन शहरों को बसने के लिए ये गाँव तो उजड़ते ही है, पर साथ ही उन परिवारों को बेघर और रोज़गारहीन कर देते है जों उन गाँव में रहते है. अगर कोई इंसान उस गाँव में रसूखदार है और सोने पे सुहागा अगर किसी पार्टी का प्रतिनिधि या मेम्बर है और भगवान न करे किसी रूलिंग पार्टी का नेता है या किसी नेता का रिश्तेदार है तो पुरे गाँव
को दरकिनार कर सारा फायदा उस एक इंसान को पहुंचती है.

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चौथा मुद्दा
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स्कूल,कॉलेज और यूनिवर्सिटी  के नाम पर, ये विदेशी शिक्षा और विदेशी संस्था  जों भारत में अपने शैक्षणिक संस्थान खोलने के लाइसेंस और परमिट देते जा रही है वही. भारतीय शिक्षा संस्थानों का स्तर निचा करते हुए, और standard के नाम पर मोटी तगड़ी फीस वसूलते हुए, उन छात्रों को शिक्षा से सीधे सीधे वंचित कर रही है जों की प्रतिभा रखते है पर केवल इस लिए नहीं पढ़ सकते की वो उन संस्थानों की मोटी फीस नहीं चूका सकते. देश में शिक्षा लोन देने की बात तो सरकार करती है, पर जब ऐसे छात्रों को शिक्षा लोन देने की बात आती
है तो हर बैंक कुछ न कुछ सिक्यूरिटी चाहता है. इसपर भी सरकार का ही नियंत्रण है. कई विश्वविद्यालयों में आर्थिक और शैक्षणिक घोटालों और शिक्षा के निम्न स्तर के चलते उनका वार्षिक परिणाम २३% से ३२% के बिच ही बना हुआ है उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. सरकार सिर्फ पैसे वसूलती है और खामोश हो जाती है. आई . आई. एम् जैसे संस्थानों की फीस १६ लाख से २० लाख के बिच है, इन छात्रों न फीस में छूट मिलती है न सरकारी सब्सिडी.

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पांचवा मुद्दा
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भारत की शल्य चिकित्सा और आयुरवेदिक चिकित्सा अब पूरा विश्व अपना रहा है और भारतीय डॉक्टर अपनी प्रतिभा से पुरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुके है, पर अपने देश में ही डॉक्टरों की कमी है, अस्पतालों की कमी है, बिस्तरों की कमी है. AIIMS, MANIPAL, AMITY, LPU, BHU, BVP और JIPMER जैसे संस्थानों से डॉक्टर तो खूब निकल रहे है पर उनपर सरकार ऐसा कोई भी कानून नहीं लगाती की, MBBS की पढाई करने के तत्पश्चात जब वो उच्च शिक्षा के लिए चाहे कही भी
जाये, उनकी MBBS की डिग्री तभी मान्य होगी जब वो उच्च शिक्षा के पश्चात देश में लौट कर देश में ही अपनी चिकित्सा सेवाएं दे. ५ साल की सेवा के पश्चात वो कही भी जा कर अपनी सेवाएं दे सकते है. देश में न तो मेडिकल कॉलेज बढ़ रहे है और न ही डॉक्टर. जों भी है वो उच्चकोटि की भारतीय शिक्षा के बाद देश छोड़ कर विदेशों में जाकर रह रहे है.

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छठा मुद्दा
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सरकार इंजिनियर भी खूब बना रही है, देश में करीब हर वर्ष ४ लाख इंजिनियर, स्नातक होते है पर, केवल नौकरी के आभाव में और विदेशों की चकाचौंध में देश छोड़ रहे है. वही दूसरी तरफ देश में कई तकनीकी विभागों में कर्मचारी अपनी पेंशन की उम्र में रिटायर हो रहे है पर, उनकी रिक्त जगह भरने के लिए सरकार के पास वक्त नहीं है. यही हाल सेना और सुरक्षा विभागों का है. सेना में ही करीब लगभग ७०,००० अफसर रैंक, ३,७५,००० अन्य रैंक रिक्त है. जिनको भरने के लिए सरकार के पास वक्त नहीं है, हाँ पर घोटालों ले लिए सरकार सरकारी समय के आलावा अतिरिक्त समय जरूर निकाल लेती है.

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सातवा मुद्दा
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भारत देश की अर्थ व्यवस्था को सरकार पुरे विश्व में सबसे मजबूत बताती है, इसके हमे भी किसी प्रकार का शक नहीं है, परन्तु सरकार ने अपनी विदेशी निवेश निति की तहत विदेशी कम्पनियों की निवेश सीमा करीब ३०%, पुरे भारतीय शेयर बाज़ार का निवेश अंश प्रदान किया है. जब जब किसी देश में आर्थिक संकट आता है तो वो देश अपना पूरा विदेशी निवेश भारतीय बाज़ारों से खिंच लेता है,
देखते देखते अन्य देश भी वही करते है और उस कारण हमारी अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है, फिर भी सरकार झूठे आश्वाशन देती है और कहती है की हम हर तरह से सक्षम है इस दबाव को सहने के लिए. जिसके कारण भारतीय निवेशक आत्महत्या तक के कगार पर कई बार पहुँच चुके है.

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