शुक्रवार, अगस्त 02, 2013

!! योग साधना !!

























मनुष्य देवता बन सकता है ! यदि मनुष्य अपने कर्मो को तन मन से निःस्वार्थ भाव से करे तो ! लेकिन मनुष्य में जीवन भर अपने कर्मो से अधिक फल भोगने का इक्षा दुखी जीवन बना देता है ! जीवन भर सुख आनंद भोगने के बाद, पाप कर्म करने के बाद भी मंदिर, देवालयों का चक्र लगाने लगता है ! कुछ जीवात्मा तो मनुष्य योनि में सुख भोगने के लिए ही आता है ! चाहे प्रकृति नष्ट क्यों नहीं हो जाय उसे सुख भोगना है ! वैसे मनुष्य अकाल मृत्यु का कारन बनकर जीव शरीर को त्याग करता है !
नियम पूर्वक किये गए योग साधना में कम से कम तीन वर्ष में दिव्य अनुभूति स्वतः आने लगता है ! यदि सिद्ध गुरु मिल जाय तो गुरु कृपा से वह अनुभव एक से तीन दिन में प्राप्त हो सकता है !
योग साधना में इतना शक्ति है की आस पास का गतिविधि अपने अनुकूल बनाया जा सकता है ! मन के अनुसार व्यक्ति पर ही नहीं बल्कि प्रकृति पर भी असर होता है ! योग साधना में प्राप्त सूक्षम शक्ति का कण प्राकृतिक तत्व को भी परिवर्तित कर देता है ! मन के अनुसार प्रकृति बदलने लगता है !
योग साधना से साधक को सुरक्षा चक्र प्राप्त होता है ! जो हर प्रकार से मानवीय एवं प्राकृतिक दुर्घटना से बचाता है !
साधक को भविष्य में होने वाले घटना के बारे में पूर्व ज्ञात हो जाता है! जिससे वो अपने निजी कार्यक्रम को उसके अनुकूल बना सकते हैं ! यह सूक्षम शक्ति तब तक रहता है जब तक साधक इस शक्ति को गोप्यता के साथ धारण किये रहता है !
योग साधना तप है जिसमे भौतिक शरीर को लोहे की भांति तपाते हैं और फिर सूक्षम शक्ति को धारण करने योग्य बनाते हैं ! साधना का मूल उद्धेश्य आनंदमय जीवन के साथ समाजिक उत्थान होना चाहिए !
रत्येक जीव शिव का ही अंश है ! उनसे ही उद्गम है, और उनमें ही समाहित हो जाना है! शिवत्व से मिलन के लिये शिव-तत्व तो अनिवार्य है ! आत्म-शुद्धि तो अनिवार्य है !  ॐ नमः शिवाय! 
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