जीत उन्हीं की होती है जो भौतिक शक्तिओं तक
ही सीमित न रह कर परमात्मा को अपने जीवनरथ
का सारथी बना लेते हैं।ईश्वर विश्वास के लिए श्रद्धा
का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भौतिक जीवन तथा शारीरिक
क्षेत्र में प्रेम की सीमा होती है। जब यही प्रेम आन्तरिक
अथवा आत्मिक क्षेत्र में काम करनेलगता है, तो उसे श्रद्धा
कहते हैं। यह श्रद्धा ही ईश्वर-विश्वास का मूल स्रोत है एवं
श्रद्धा के माध्यम से ही उस विराट की अनुभूति सम्भव है।
श्रद्धा समस्त
जीवन नैया की पतवार को ईश्वर के हाथों सौंप
देती है। जिसकी जीवन डोर प्रभु के
हाथों में हो भला उसे क्या
भय ! भय तो उसी को होगा जो अपने कमजोर हाथ पाँव
अथवा संसार की शक्तियों पर भरोसा करके चलेगा। जो प्रभु का
आंचल पकड़ लेता है, वह निर्भय हो जाता है, उसके सम्पूर्ण
जीवन से प्रभु का प्रकाश भर जाता है। तब उसके जीवन
व्यापार का प्रत्येक पहलू प्रभु प्रेरित होता है, उसका चरित्र
दिव्य गुणों से सम्पन्न हो जाता है।
अथवा संसार की शक्तियों पर भरोसा करके चलेगा। जो प्रभु का
आंचल पकड़ लेता है, वह निर्भय हो जाता है, उसके सम्पूर्ण
जीवन से प्रभु का प्रकाश भर जाता है। तब उसके जीवन
व्यापार का प्रत्येक पहलू प्रभु प्रेरित होता है, उसका चरित्र
दिव्य गुणों से सम्पन्न हो जाता है।
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