"जीवन एक संग्राम है और निडर होकर ही
उसका डटकर सामना करना पड़ता है |
उसका डटकर सामना करना पड़ता है |
यह भावना तभी ढृढ़ होती है , जब ईश्वर की
मित्रता का मन में विश्वास होता है |फिर थकावट
मित्रता का मन में विश्वास होता है |फिर थकावट
नहीं लगती और मन को विश्राम मिलता है |रेलगाड़ी
में स्थान सुरक्षित करने पर सफ़र में विश्राम किया
तो भी मंजिल पर पहुचने का अटल भरोसा होता है,
क्योंकि चलाने वाले की कुशलता तथा सम्पूर्ण
सहयोग पर अपना ढृढ़ विश्वास रहता है | परन्तु
स्वयं अपने पर ही सब जिम्मेदारी लेकर , अपनी
ही कार में अकेला बैठकरपूरा बोझ उठाया तो थकावट
आने लगती है और बार-बार सोचता है कि कोई कुशल
साथी होता तो कितना अच्छा होता |"
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