सोमवार, अक्तूबर 31, 2011

ब्रूस ली उवाच ............































Q - सबसे  ऊँचे दर्जे की तकनीक कौन सी है ?
Ans -ऐसी कोई तकनीक ही नहीं है .
Q -क्या ख्याल आते है ? जब सामने दुश्मन होता है .
Ans -कोई दुश्मन नहीं होता
Q -क्यों ?
Ans -क्योंकि "मै" नाम का कोई लब्ज नहीं होता ....एक अच्छा मुकाबला होना चाहिए किसी नाटक की तरह ,पर संजीदगी से खेला हुआ ,एक अच्छा मार्शल आर्टिस्ट बेचैन नहीं होता ,तैयार रहता है,और जो करता है वो सोच समझ कर करता है हरदम चौकने रहता है.जब विरोधी फैलता है तो "मै" सिकुड़ जाता है ,और जब वो सिकुड़ता है तो "मै" फ़ैल जाता है और जब मौका मिलता है तो "मै" बार नहीं करता ये शरीर के अंग खुद ब खुद वार कर देते है और ये हमेशा याद रखना की दुश्मन सिर्फ छलावा दिखाता है,मायाजाल बिछाता है ,जिसके पीछे वो अपना असली मकसद छिपाता है,मायाजाल मिटा दो दुश्मन मिट जायेगा ..........
विशेष :-एक अच्छे मार्शल आर्टिस्ट को अपनी जिम्मेदारियाँ खुद निभानी चाहिए ,और अपने किये का फल हमेशा स्वीकार करना चाहिए    

मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

को नही जानत है जग मे......


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को नही जानत है जग मे कपि सकंट मोचन नाम तिहारो ।।
काज किये बड देवन के तुम वीर महाप्रभु देखि विचारो ,
कौन सो सकंट मोर गरीब को जो तुमसे नही जात है टारो ,
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु सकंट होय हमारो ।।
को नही जानत है जग मे कपि सकंट मोचन नाम तिहारो ।।।

शनिवार, अक्तूबर 15, 2011

विचार शक्ति ही भाग्य रेखा.............


















कहा जाता है कि खोपड़ी में मनुष्य का भाग्य लिखा रहता है।
इस भाग्य को ही कर्म लेख भी कहते हैं । मस्तिष्क में रहने
वाले विचार ही जीवन का स्वरूप निर्धारित करने और 
सम्भावनाओं का ताना-बाना बुनते हैं । इसलिए प्रकारान्तर
से भी यह बात सही है कि भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में 
लिखा रहता है । कपाल अर्थात् मस्तिष्क । मस्तिष्क अर्थात्
विचार । अत: मानस शास्त्रप के आचार्यों ने उचित ही संकेत 
किया है कि भाग्य का आधार हमारी विचार पद्धति ही हो सकती है । 

विचारों की प्रेरणा और दिशा अपने अनुरूप कर्म करा लेती है । 
इसलिए भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में लिखा रहता है, 
जैसी भाषा का प्रयोग पुरातन ग्रंथ से करते हुए भी तथ्य यही
प्रकट होता है कि कर्तृत्व अनायास ही नहीं बन पड़ता, उसकी
पृष्ठभूमि विचार शैली के अनुसार धीरे-धीरे मुद्दतों में बन पाती है ।

बुधवार, अक्तूबर 12, 2011

कर्म के साथ भावना को भी जोडें.......


















भोजन से उर्जा मिलती है, नींद से उर्जा बचती है, व्यायाम से उर्जा जगती
है , फिर हम इस उर्जा को खर्च करते है ...
दिनभर लोहा पीटने वाले लुहार की अपेक्षा अखाड़े में
दो घण्टे कसरत करने वाला पहलवान अधिक परिपुष्ट 
पाया जाता है।इसका कारण व्यायाम के साथ जुड़ी हुई
उत्साहवर्द्धक भावना है।कसरत करते समय यह मान्यता
रहती है कि हम स्वास्थ्य साधना कर रहे हैं और इस आस्था
का मनोवैज्ञानिक असर ऐसा चमत्कारी होता है कि देह ही 
परिपुष्ट नहीं होती,मन की हिम्मत तथा सशक्तता भी बहुत बढ़ जाती है ।