शनिवार, अक्तूबर 09, 2010

"प्रार्थना"

"वह शक्ति हमे दो दयानिधे,
कर्तव्य मार्ग पर ड़ट जाये ।
पर-सेवा पर-उपकार में हम,
निज जीवन सफ़ल बना जावॆ,।
हम दीन-दुखी निर्बलो विकलो के,
सेवक बन संताप हरे ।
जो हो भूले-भटके बिछडे़,
उनको तारे खुद तर जावे ।
छल-द्वेष-दंभ पाखण्ड़ झूठ अन्याय,
से निस दिन दूर रहे ।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना,
सुची-प्रेम सुधा रस बरसाये,
निज आन-मान मर्यादा का,
प्रभु ! ध्यान रहे, अभिमान रहे ।
जिस देव भूमि में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावे ।।